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Showing posts from December, 2015

My Viwes on Journalist Associations

अत्याचार, भ्रष्टाचार, समाज में चल रही कुरितीयों के खिलाफ आवाज उठानेवाले पत्रकारोंको संगठन की जरूरत क्यों पडती है? इस सवाल का साधा जवाब देवता माझे कभी संभव नहीं हुआ। पत्रकार के हातों में इतनी ताकत है की वर हर किसी की समस्यांओं का समाधान कर सकती है, फिर ऐसी क्या जरूरत आन पडती है की संगठन बनाया जाय? बदलतें हालातों में पत्रकारिता की दिशा और दशा भी बदली है. स्वतंत्रता के पूर्व और उसके बाद वाले पत्रकारिता और अब के जमाने की पत्रकारिता में गुणात्मक फर्क है। तब पत्रकारिता विचारों के लिए होती थी,अब विचारों के साथ खबरों के लिए भी होती है। तब दुश्मन एक था अब कई सारे है और वो भी हर वक्त बदलते रहतें है। कुछ लोग कहते है कि पत्रकारिता का स्तर फिसल गया है, इसलिए पत्रकार टार्गेट किए जाते है। मैं इस बात ये सहमत नहीं हूॅं। समाज में अच्छे बुरे लोग-संस्था-शक्ती हर क्षेत्र में होती है, पत्रकारिता में भी ऐसी बुरी शक्तीयाॅं आ चुकी है। लेकीन इसका मतलब कतई ऐसा नहीं है कि पत्रकारिता का असली धर्म बदल चुका है। पत्रकारिता में आई हुई बुरी शक्तीयों से भी हमें लडना होगा। साथ ही हमें पत्रकारिता के विकास और उत्कर्ष के