कहा पर हो, कसाब को फांसी दी गई है, सुबह से तुम्हारा फोन लगा रहे थे
सुबह ७ बजकर ४० मिनट पर एक विधायक दोस्त का फोन आया। आर आर पाटील के करीबी इस विधायक की बात पर विश्वास ना करने का सवाल ही नहीं था, फिर मैंने फोन देखा, कई मिस्ड काॅल देखे, मेल पर देखा तो कसाब की मर्सी पिटीशन रिजेक्ट की खबर थी।
मैं तुरंत उठा, पहला फोन आर आर पाटील को लगाया। पिछले कुछ दिनों ने आर आर पाटील और मेरे बीच मीठी तकरार चल रही थी, बातचित बंद थी, फोन उठाएंगे या नहीं पता नहीं था। उनका फोन बिझी था, इतनी सुबह उनका फोन आॅन होना ही संकेत था की कुछ गडबड जरूर है। फोन नहीं उठाया गया।
मैंने आशा छोड दी की वो काॅल उठाएंगे। मैंने सुशीलकुमार शिंदे को फोन लगाया, उनका फोन भी बिझी था, इतनें में आर आर पाटील का फोन वेटींग पर था। मैंने फोन रिसिव किया, वो कुछ बोले इसके पहले की मैंने सवाल दागा, क्या खबर कन्फर्म है?
उन्होंने जवाब दिया हां...... ७.३० बजे....।।।।।
आगे वो कुछ और बता रहे थे, मैंने फोन काट दिया....। थोडा सा अटपटा लगा होगा उन्हे भी लेकिन उतना समय नहीं था। मेरे मित्र निलेश खरे को भी खबर मिल गई थी। खबर रोके रखना गलत था। ब्रेकीमग चल गई कसाब को फांसी।
मुंबई आतंकी हमले का एक आखिरी अध्याय खत्म हो गया। मुंबई पर आतंकी हमला कर बेगुनाह लोगों की जान लेने वाले कसाब को फ्री एंड फेअर ट्रायल देने के बाद अब दया याचिका कितनं सालों तक पेन्डींग रहेगी इस बात को लेकर आम लोगों में गुस्सा था। कसाब को जिंदा रखकर पाकिस्तान और अन्य देशों पर आतंकवाद को लेकर दबाव बनाए रखना सरकार को महंगा पड सकता था, लोगों का गुस्सा बिगडते राजनितीक समीकरणों को देखते हुए सरकार को आखिर फैसला लेना पडा।
शायद इस फैसले से कांग्रेस को राजनितीक फायदा भी होगा। अफजल गुरू की फांसी पर फैसला लेने से बच रही कांग्रेस सरकार ने शीतकालीन सत्र से पहले ये फैसला लेकर सरकार विरोधी सूरों को भी नर्म करने की कोशीश की है। गुजरात चुनावों में भी नरेंद्र मोदी का प्रभाव कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल कांग्रेस कर सकत है। महाराष्ट्र में तो इसका फायदा होगा ही। ऐसे में कसाब की फांसी के इस गोपनीय आॅपरेशन ने सरकार की इज्जत पर चार चांद लगा दिए, अब इंतजार है अफजल गुरू पर सरकर कब फैसला लेती है इस बात का......।।
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Kasab is mere a pawn, the master-mind is Pakistan and whether Congress has guts to end the terrorism? If so, next step should be hanging Afzal Guru ignoring vote bank politics?