मुंबई के गुनाहगार....
पिछले 10 दिनों से बर्मा में हो रही हिंसा को लेकर सोशल नेटवर्कींग साईटस पर मेसेजेस देखने को मिल रहे थे.. जंगल की आग की तरह ये मेसेजेस फॉरवर्ड किए जा रहे थे। एसएमएस हो या फिर बीबीएम..टवीटर या फिर फेसबुक... कोई ऐसी जगह नहीं थी जहा ये मेसेजेस आपका पीछा ना कर रहे हो.
हैरानगी की बात हैं कि किसी पुलिसवाले ने ये मेसेजेस पढे ना हो... हर सरकार का अपना इंटेलिजन्स विभाग होता हैं, ये विभाग कितना इंटेलिजन्ट होता हैं ये बात छोडीए पर साईड पोस्टींग पर काफी सारे अधिकारी यहां पर तैनात किए जाते हैं। साईड पोस्टींग होने की वजह से पहले से ही परेशान पुलिसवालों के हाथों मे होती हैं हमारी सुरक्षा.. ये कोई नई बात नहीं हैं। सालों से यहीं चला आ रहा हैं।
शनिवार दोपहर को जो हुआ उससे साफ हुआ की हमारी पुलिस सीमापार के आतंकवाद से ही नहीं बल्की घरेलू खतरों से भी अनजान हैं। मुंबईजैसे शहर में अगर कोई बडी रैली निकलने वाली होती हैं तो मुंबई पुलिस इसे कई शर्तों पर इजाजत देती है। समाज के स्वास्थ को खतरा हो तो अन्ना को भी आझाद मैदान में रैली लेने की इजाजत नहीं मिलती। यहां तो मामला कुछ और था। मामला इमोशनल था, धर्म और गर्म खून से जुडा हुआ था। बर्मा और असम में हो रही हिंसा के विरोध में प्रदर्शन था। आम तौर पर इस प्रदर्शन के आयोजकों के इतिहास को अगर देखा जाए तो अब तक उन्होंने कोई बडी रैली नहीं की थी, और न हीं कभी इस प्रकार की हिंसा.. इसलिए शायद उन्हे इजाजत मिल गई होगी.. डेढ - दो बजे तक सबकुछ ठिक चल रहा था.. लोग आ रहे थे.. जुड रहे थे... फिर अचानक मामला बिगडा...
पुलिस में जो कुछ सूत्र हैं वो ये बताते हैं कि 2 बजे के बाद एकदम से भीड बढनी शुरू हो गई। आझाद मैदान पर हर वक्त पुलिस मौजूद रहती हैं। 600-700 पुलिसवाले हर वक्त आस पास रहते हैं। अचानक बढती भीड से भी पुलिस के कान खडे नहीं हुए। इस पुरे आयोजन से पहले जो एसएमएस भेजे रहे थे उन्हे भी जरा जानकारी के लिए पढ लेते हैं..
What The Hell is happening in Burma ???
Where is the HUMAN RIGHTS ????
Why buddhist ' so called PEACE worshipers and they're vegetarians and don't eat non veg coz they cant kill a life and animals and they are killing these innocent human beings !
I'm not talking about killing of MUSLIMS ! For Gods Sake,they are human beings!!! There are small kids !!! Kindergarten kids !!! Innocent woman !!!
Get Lost U media ! Human right , Red cross ! We need the answer! Why only muslims are broadcasting such stuff ??? Why not the non muslims or else u will see all broadcasting about animal rights all d time?? Isn't there any more humanity left ?? There nothing to be happy about if muslims r dying ! It can be any1 of us ONE DAY !! We all worship One god and have to return one day and have to answer GOD!!!Have shame human beings n watch thishttp://t.co/yafKXjYu
जो मेसेज अभी आपने पढा वो इन 10 दिनों में लगभग 500 बार पढा हैं। मुस्लीम ही नहीं हिंदू भी इसे फॉरवर्ड कर रहे हैं। अपने इनबॉक्स में आए हुए हर मेसेज को फॉरवर्ड करना जिन्हे अपना धर्म लगता हैं ऐसे सोशल मीडिया धर्म के लोगों ने इसे जमकर फॉरवर्ड किया, बिना ये सोचे की आखिर इसका असर क्या होगा..
इस मेसेज के साथ जो लिंक दी गई हैं,उसे देखकर तो किसी भी आदमी का खून खौल उठेगा..ऐसे में यहां सवाल धर्म का हैं। गुस्सा आना लाजमी है। लेकिन सच्चाई की तह तक जाना भी जरूरी हैं. मुंबई में जो हिंसा हुई और दो लोगों को अपनी जान गंवानी पडी, कई पुलिस वाले, मीडियावाले घायल हुए, ओबी वैन और बाकी कई गाडीयों को नुकसान हुआ। इस पुरी हिंसा की तह तक जाकर उसके कारणों की समिक्षा करना जरूरी हैं। आखिर बर्मा में हो रही हिंसा की खबरे अचानक कैसे आने लगी.. क्या हैं पुरा मामला.. दरअसल जून-जुलाई के महिनों में फेसबुक-ट्वीटर और ब्लैकबैरी पर एक ब्लॉग की लिंक भेजी जाने लगी... ये लिंक इतनी फॉरवर्ड की गई की आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। कुद्रातुल्ला अहमदी नाम के किसी शख्स ने अपने ब्लॉगपर डाले ये फोटो दुनिया के हर कोने में पहुंचे....फराज अहमद नाम के एक युवा ब्लॉगर ने इस पुरे मामले पर ज्यादा रोशनी डाली। फराज के ब्लॉग की लिंक यहां पर दे रहा हूँ, एक बार जरूर पढीए।
Social media is lying to you about Burma’s Muslim ‘cleansing’ – The Express Tribune Blog
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http://blogs.tribune.com.pk/story/12867/social-media-is-lying-to-you-about-burmas-muslim-cleansing/
फराज के इस ब्लॉग में सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किए जा रहे फोटोज की सच्चाई पर ही सवाल खडे किए गए। ये फोटो कैसे फैब्रिकेटेड हैं ये बताया गया हैं। लेकिन हम क्यों विश्वास करें.. आग होगी तभी धुवा निकला होगा ना.. मैं खुद मुवमेंट में काम कर चुका हूँ, गुमराह करने के लिए अक्सर ऐसे रिपोर्ट पेश होते रहते हैं। जिज्ञासा वश मैने म्यानमार के कुछ न्यूजपेपर्स के दफ्तरों में फोन किया। वहां के एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे एक लिंक भेजी कहा की आपके सवालों के जवाब मिल जाएंगे. फेसबुक पर घुम रहे तुर्की मिनिस्टर के फोटो के बारे में भी इस लिंक पर मुझे जानकारी मिली। म्यानमार में इसे रखिने हिंसा के नाम से जाना जाता हैं। म्यानमार के प्रेसिडेंट थेन सेन के मुताबिक एक युवती की हत्या के बाद हिंसा की शूरूआत हुई। इस घटना के बाद कुल 60 हजार लोग बेघर हुए और 77 लोगों की जान जा चुकी हैं, जिसमें बुद्धीष्ट और मुस्लीम ऐसे दोनों धर्म के लोग शामील हैं। करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। 4800 घर जल चुके हैं। इन आंकडों को भी अगर हम सरकारी मान कर तवज्जों ना दे, तो ऐसे में एक ही रास्ता बचता हैं खुद वहां जाकर स्थिती का आकलन करना...जिन नेताओं ने बर्मा की हिंसा को लेकर अपनी राजनितीक रोटीयां सेंकने की कोशीश की उनमें से मुझे नहीं लगता की किसीने इस विषय ते तह तक जाने की कोशीस की हैं। बर्मा किलींग पर ज्यादा जानकारी के लिए पढिए -
http://asiancorrespondent.com/87422/burma-needs-greater-transparency-to-tackle-rakhine-issueturkish-fm/
हजारों लोग बेघर हुए, कई लोगों की जानें गई। इन बातों का राजनितीक फायदा उठाने की दुनिया के हर कोने में कवायद जारी हैं। भारत में भी ये होना था। मुंबई वैसे ही बारुद के ढेर पर हैं। यहां अफवाह फैलाना सबसे ज्यादा आसान हैं। संवेदनशील मामला होने की वजह से दुनिया भर की सरकारे इस विषय पर बारिकी से ध्यान दिए बैठी हैं। लेकिन शायद केंद्र की युपीए और राज्य की कांग्रेस - गठबंधन सरकार बिल्कुल शांत हैं.. शायद उन्हें सत्ता के अमरत्व का वरदान मिल गया हैं।
मुंबई पुलिस और गृहमंत्री आर आर पाटील हमेशा की तरह स्वस्थ और सुखी जीवन जी रहे हैं। जब किसी मुद्दे पर कोई रास्ता नहीं मिलता और साफ हो जाता हैं कि अब फसना हैं तो आर आर पाटील अपनी तय रणनिती के तहत मीडिया पर हमला बोल देते हैं। जेडे हत्याकांड में उन्होने जिग्ना वोरा पर कारवाई करके मीडिया की आवाज बंद करा दी, अब जब आझाद मैदान कि हिंसा के बाद उंगलिया उठनी लगी तो पहले से ही भीड से मार खा चुकी मीडिया पर ही आर आर पाटील ने लाठीचार्ज करवा दिया।
आर आर पाटील इतने भले इन्सान हैं कि अब उन्होंने पुलिसवालों को सस्पेंड करना ही बंद कर दिया हैं। अगर कोई पुलिसवाला डकैती भी कर के आएगा तो आर आर पाटील उसे सुरक्षा देते हुए बोलेंगें कि बेचारा पुलिसवाला क्या करेगा.. इतनी सैलरी में उसकी जिंदगी कटती नहीं। जिस साफ छवी के प्यार में पडकर आर आर पाटील बिल्कुल भी कडवे फैसले नहीं लेना चाहते वो छवी उन्हे एक दिन कुर्सी छोडने पर जरूर मजबूर करेगी। आर आर पाटील ने जिस घोडे पर बैठकर रेस जितनी हैं उसी घोडे से दोस्ती कर ली हैं। अब रेस के वक्त घोडा भी गार्डन में टहल रहा हैं। उसे पता हैं उसका मालिक भला इन्सान हैं, कुछ नहीं बोलेगा..आर आर पाटील पर हाल ही के दिनों में पार्टी के आका शरद पवार भी बिगडे हुए हैं। पुणे में बम धमाकों के बाद आर आऱ पाटील के नंबर घट गए हैं।
आर आर पाटील सभी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। उनकी टीम के लगभग सारे अधिकारी सोशल मीडिया पर सोशल मीडिया की बात छोड दिजीए लेकिन दो बजे के बाद अचानक भीड बढने का कारण कई अधिकारीयों को पता था, अधिकारीयों को पता चल चुका था की कई बस्तीयों में से लोगों को गाडीयां भेजकर बुलाया जा रहा हैं.. फिर भी उन्हें खतरे का आगाज नहीं हुआ। शांतिपूर्ण तरिके से जो मुस्लीम आझाद मैदान पर इकठ्ठा हुए थे मुझे नहीं लगता उन्हे बाहर आई उस भीड की मंशा के बारे में कोई जानकारी होगी। क्योंकि ये भीड जहां से निकली थी वहीं से उसने अपने इरादे जाहीर करना शुरू कर दिए थे..ओबी वैन में आग लगाने के लिए बोतलों में पेट्रोल भर कर लाया गया था.. पुलिसवालों की सर्वीस रिवॉल्वर छीनी गई..ये भीड कुछ और ही भीड थी..शायद ऐसी भीड का किसी धर्म से कई वास्ता नहीं होता..लेकिन बात जो भी हो जिस मुंबई पुलिस की तूती बोला करती थी उस पुलिस की सर्वीस रिवॉल्वर पर छीन कर इस भीड ने आर आर पाटील कोअपनी और उनकी ताकत का एहसास करा दिया...
ब्लैकबेरी के माध्यम से लंदन में जो हिंसा हुई उसका छोटासा नजारा मुंबई में देखने को मिला, इस हिंसा के पीछे राजनितीक हाथ भी हो सकता हैं.. लेकिन आर आर पाटील की पुलिस खतरे को भांपने में फेल हो गई... आर आर पाटील शायद अब इन घटनाओं से कुछ सबक ले।
Violence at Azad maidan... |
पिछले 10 दिनों से बर्मा में हो रही हिंसा को लेकर सोशल नेटवर्कींग साईटस पर मेसेजेस देखने को मिल रहे थे.. जंगल की आग की तरह ये मेसेजेस फॉरवर्ड किए जा रहे थे। एसएमएस हो या फिर बीबीएम..टवीटर या फिर फेसबुक... कोई ऐसी जगह नहीं थी जहा ये मेसेजेस आपका पीछा ना कर रहे हो.
हैरानगी की बात हैं कि किसी पुलिसवाले ने ये मेसेजेस पढे ना हो... हर सरकार का अपना इंटेलिजन्स विभाग होता हैं, ये विभाग कितना इंटेलिजन्ट होता हैं ये बात छोडीए पर साईड पोस्टींग पर काफी सारे अधिकारी यहां पर तैनात किए जाते हैं। साईड पोस्टींग होने की वजह से पहले से ही परेशान पुलिसवालों के हाथों मे होती हैं हमारी सुरक्षा.. ये कोई नई बात नहीं हैं। सालों से यहीं चला आ रहा हैं।
शनिवार दोपहर को जो हुआ उससे साफ हुआ की हमारी पुलिस सीमापार के आतंकवाद से ही नहीं बल्की घरेलू खतरों से भी अनजान हैं। मुंबईजैसे शहर में अगर कोई बडी रैली निकलने वाली होती हैं तो मुंबई पुलिस इसे कई शर्तों पर इजाजत देती है। समाज के स्वास्थ को खतरा हो तो अन्ना को भी आझाद मैदान में रैली लेने की इजाजत नहीं मिलती। यहां तो मामला कुछ और था। मामला इमोशनल था, धर्म और गर्म खून से जुडा हुआ था। बर्मा और असम में हो रही हिंसा के विरोध में प्रदर्शन था। आम तौर पर इस प्रदर्शन के आयोजकों के इतिहास को अगर देखा जाए तो अब तक उन्होंने कोई बडी रैली नहीं की थी, और न हीं कभी इस प्रकार की हिंसा.. इसलिए शायद उन्हे इजाजत मिल गई होगी.. डेढ - दो बजे तक सबकुछ ठिक चल रहा था.. लोग आ रहे थे.. जुड रहे थे... फिर अचानक मामला बिगडा...
पुलिस में जो कुछ सूत्र हैं वो ये बताते हैं कि 2 बजे के बाद एकदम से भीड बढनी शुरू हो गई। आझाद मैदान पर हर वक्त पुलिस मौजूद रहती हैं। 600-700 पुलिसवाले हर वक्त आस पास रहते हैं। अचानक बढती भीड से भी पुलिस के कान खडे नहीं हुए। इस पुरे आयोजन से पहले जो एसएमएस भेजे रहे थे उन्हे भी जरा जानकारी के लिए पढ लेते हैं..
What The Hell is happening in Burma ???
Where is the HUMAN RIGHTS ????
Why buddhist ' so called PEACE worshipers and they're vegetarians and don't eat non veg coz they cant kill a life and animals and they are killing these innocent human beings !
I'm not talking about killing of MUSLIMS ! For Gods Sake,they are human beings!!! There are small kids !!! Kindergarten kids !!! Innocent woman !!!
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जो मेसेज अभी आपने पढा वो इन 10 दिनों में लगभग 500 बार पढा हैं। मुस्लीम ही नहीं हिंदू भी इसे फॉरवर्ड कर रहे हैं। अपने इनबॉक्स में आए हुए हर मेसेज को फॉरवर्ड करना जिन्हे अपना धर्म लगता हैं ऐसे सोशल मीडिया धर्म के लोगों ने इसे जमकर फॉरवर्ड किया, बिना ये सोचे की आखिर इसका असर क्या होगा..
इस मेसेज के साथ जो लिंक दी गई हैं,उसे देखकर तो किसी भी आदमी का खून खौल उठेगा..ऐसे में यहां सवाल धर्म का हैं। गुस्सा आना लाजमी है। लेकिन सच्चाई की तह तक जाना भी जरूरी हैं. मुंबई में जो हिंसा हुई और दो लोगों को अपनी जान गंवानी पडी, कई पुलिस वाले, मीडियावाले घायल हुए, ओबी वैन और बाकी कई गाडीयों को नुकसान हुआ। इस पुरी हिंसा की तह तक जाकर उसके कारणों की समिक्षा करना जरूरी हैं। आखिर बर्मा में हो रही हिंसा की खबरे अचानक कैसे आने लगी.. क्या हैं पुरा मामला.. दरअसल जून-जुलाई के महिनों में फेसबुक-ट्वीटर और ब्लैकबैरी पर एक ब्लॉग की लिंक भेजी जाने लगी... ये लिंक इतनी फॉरवर्ड की गई की आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। कुद्रातुल्ला अहमदी नाम के किसी शख्स ने अपने ब्लॉगपर डाले ये फोटो दुनिया के हर कोने में पहुंचे....फराज अहमद नाम के एक युवा ब्लॉगर ने इस पुरे मामले पर ज्यादा रोशनी डाली। फराज के ब्लॉग की लिंक यहां पर दे रहा हूँ, एक बार जरूर पढीए।
Social media is lying to you about Burma’s Muslim ‘cleansing’ – The Express Tribune Blog
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http://blogs.tribune.com.pk/story/12867/social-media-is-lying-to-you-about-burmas-muslim-cleansing/
फराज के इस ब्लॉग में सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किए जा रहे फोटोज की सच्चाई पर ही सवाल खडे किए गए। ये फोटो कैसे फैब्रिकेटेड हैं ये बताया गया हैं। लेकिन हम क्यों विश्वास करें.. आग होगी तभी धुवा निकला होगा ना.. मैं खुद मुवमेंट में काम कर चुका हूँ, गुमराह करने के लिए अक्सर ऐसे रिपोर्ट पेश होते रहते हैं। जिज्ञासा वश मैने म्यानमार के कुछ न्यूजपेपर्स के दफ्तरों में फोन किया। वहां के एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे एक लिंक भेजी कहा की आपके सवालों के जवाब मिल जाएंगे. फेसबुक पर घुम रहे तुर्की मिनिस्टर के फोटो के बारे में भी इस लिंक पर मुझे जानकारी मिली। म्यानमार में इसे रखिने हिंसा के नाम से जाना जाता हैं। म्यानमार के प्रेसिडेंट थेन सेन के मुताबिक एक युवती की हत्या के बाद हिंसा की शूरूआत हुई। इस घटना के बाद कुल 60 हजार लोग बेघर हुए और 77 लोगों की जान जा चुकी हैं, जिसमें बुद्धीष्ट और मुस्लीम ऐसे दोनों धर्म के लोग शामील हैं। करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। 4800 घर जल चुके हैं। इन आंकडों को भी अगर हम सरकारी मान कर तवज्जों ना दे, तो ऐसे में एक ही रास्ता बचता हैं खुद वहां जाकर स्थिती का आकलन करना...जिन नेताओं ने बर्मा की हिंसा को लेकर अपनी राजनितीक रोटीयां सेंकने की कोशीश की उनमें से मुझे नहीं लगता की किसीने इस विषय ते तह तक जाने की कोशीस की हैं। बर्मा किलींग पर ज्यादा जानकारी के लिए पढिए -
http://asiancorrespondent.com/87422/burma-needs-greater-transparency-to-tackle-rakhine-issueturkish-fm/
हजारों लोग बेघर हुए, कई लोगों की जानें गई। इन बातों का राजनितीक फायदा उठाने की दुनिया के हर कोने में कवायद जारी हैं। भारत में भी ये होना था। मुंबई वैसे ही बारुद के ढेर पर हैं। यहां अफवाह फैलाना सबसे ज्यादा आसान हैं। संवेदनशील मामला होने की वजह से दुनिया भर की सरकारे इस विषय पर बारिकी से ध्यान दिए बैठी हैं। लेकिन शायद केंद्र की युपीए और राज्य की कांग्रेस - गठबंधन सरकार बिल्कुल शांत हैं.. शायद उन्हें सत्ता के अमरत्व का वरदान मिल गया हैं।
मुंबई पुलिस और गृहमंत्री आर आर पाटील हमेशा की तरह स्वस्थ और सुखी जीवन जी रहे हैं। जब किसी मुद्दे पर कोई रास्ता नहीं मिलता और साफ हो जाता हैं कि अब फसना हैं तो आर आर पाटील अपनी तय रणनिती के तहत मीडिया पर हमला बोल देते हैं। जेडे हत्याकांड में उन्होने जिग्ना वोरा पर कारवाई करके मीडिया की आवाज बंद करा दी, अब जब आझाद मैदान कि हिंसा के बाद उंगलिया उठनी लगी तो पहले से ही भीड से मार खा चुकी मीडिया पर ही आर आर पाटील ने लाठीचार्ज करवा दिया।
आर आर पाटील इतने भले इन्सान हैं कि अब उन्होंने पुलिसवालों को सस्पेंड करना ही बंद कर दिया हैं। अगर कोई पुलिसवाला डकैती भी कर के आएगा तो आर आर पाटील उसे सुरक्षा देते हुए बोलेंगें कि बेचारा पुलिसवाला क्या करेगा.. इतनी सैलरी में उसकी जिंदगी कटती नहीं। जिस साफ छवी के प्यार में पडकर आर आर पाटील बिल्कुल भी कडवे फैसले नहीं लेना चाहते वो छवी उन्हे एक दिन कुर्सी छोडने पर जरूर मजबूर करेगी। आर आर पाटील ने जिस घोडे पर बैठकर रेस जितनी हैं उसी घोडे से दोस्ती कर ली हैं। अब रेस के वक्त घोडा भी गार्डन में टहल रहा हैं। उसे पता हैं उसका मालिक भला इन्सान हैं, कुछ नहीं बोलेगा..आर आर पाटील पर हाल ही के दिनों में पार्टी के आका शरद पवार भी बिगडे हुए हैं। पुणे में बम धमाकों के बाद आर आऱ पाटील के नंबर घट गए हैं।
आर आर पाटील सभी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। उनकी टीम के लगभग सारे अधिकारी सोशल मीडिया पर सोशल मीडिया की बात छोड दिजीए लेकिन दो बजे के बाद अचानक भीड बढने का कारण कई अधिकारीयों को पता था, अधिकारीयों को पता चल चुका था की कई बस्तीयों में से लोगों को गाडीयां भेजकर बुलाया जा रहा हैं.. फिर भी उन्हें खतरे का आगाज नहीं हुआ। शांतिपूर्ण तरिके से जो मुस्लीम आझाद मैदान पर इकठ्ठा हुए थे मुझे नहीं लगता उन्हे बाहर आई उस भीड की मंशा के बारे में कोई जानकारी होगी। क्योंकि ये भीड जहां से निकली थी वहीं से उसने अपने इरादे जाहीर करना शुरू कर दिए थे..ओबी वैन में आग लगाने के लिए बोतलों में पेट्रोल भर कर लाया गया था.. पुलिसवालों की सर्वीस रिवॉल्वर छीनी गई..ये भीड कुछ और ही भीड थी..शायद ऐसी भीड का किसी धर्म से कई वास्ता नहीं होता..लेकिन बात जो भी हो जिस मुंबई पुलिस की तूती बोला करती थी उस पुलिस की सर्वीस रिवॉल्वर पर छीन कर इस भीड ने आर आर पाटील कोअपनी और उनकी ताकत का एहसास करा दिया...
ब्लैकबेरी के माध्यम से लंदन में जो हिंसा हुई उसका छोटासा नजारा मुंबई में देखने को मिला, इस हिंसा के पीछे राजनितीक हाथ भी हो सकता हैं.. लेकिन आर आर पाटील की पुलिस खतरे को भांपने में फेल हो गई... आर आर पाटील शायद अब इन घटनाओं से कुछ सबक ले।
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