जो हमेशा होता है वो इस बार भी हुआ। देश के कृषि मंत्री शरद पवार ने मीडिया को जमकर कोसा। मीडिया विकास का विरोधी है, विकास की दृष्टि नहीं हैं मीडिया के पास और न जाने क्या- क्या...। पवार साहब राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लंबे समय तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनकी मर्जी के बगैर महाराष्ट्र में कुछ नहीं हो सकता ये भी सब जानते हैं। विकास की ही तड़प थी कि उन्होंने हेलिकॉप्टर से यात्रा के समय पुणे की वो जमीन देखी जहां पर नए भारत का एक नया शहर, सपनों का शहर बसाया जा सकता है।
देश के विकास में योगदान देने की तड़प उन्होंने अपने परममित्र अजित गुलाबचंद जो एचसीसी कंपनी के मालिक हैं उन्हें बताई। एक ऐसा शहर जहां पर सब कुछ होगा। घर होंगे, मॉल होंगे, ऑफिस होंगे, थिएटर होंगे...मतलब किसी भी काम के लिए आपको वहां से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। सारी सुख सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय दर्जे का एक शहर का नाम होगा लवासा।
सपना पवार साहब का हो और सच कैसे ना हो। लवासा के लिए जमीन का जुगाड़ शुरू हो गया। टूरिज्म, हिल स्टेशन और ऐसे कई कारणों के लिए किसान और आदिवासों की जमीन ली गई। बैकवॉटर वाली जमीन भी भतीजे अजित पवार ने अपने मंत्रिपद का इस्तेमाल कर लवासा को दे दी। इतना बडा़ काम है तो शिकायतें तो होंगी ही ना। अब किसान और आदिवासियों की जमीन होती ही है अधिग्रहण के लिए...। अब ये कैसे समझाया जाए विकास विरोधी पत्रकारों को। पत्रकारों ने लवासा के खिलाफ लिखना शुरू किया...लिखना शुरू किया तब विकास के विरोधी पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी आपत्ति उठाई। महाराष्ट्र सरकार में बैठे तत्कालीन राजस्व मंत्री नारायण राणे को भी पूरा मामला अटपटा लगा तो उन्होंने भी लवासा की इन्क्वायरी लगवा दी। लेकिन एक ही महीने के अंदर नारायण राणे को विकास की दृष्टि आ गई और उन्होंने लवासा की अनियमितताओं को मामूली हर्जाना वसूल कर नियमत करने का फैसला लिया। लेकिन ये विकास की दृष्टि पत्रकार और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के पास नहीं थी और इसी वजह से पवार साहब उखड़ गए। पहले तो उन्होंने खुलकर अपने सहयोगी मंत्री जयराम रमेश को ज्ञान सिखाने की कोशिश की। लवासा की वकालत की। अब बचे थे पत्रकार तो अपने होमग्राउंड यानी पुणे में उन्होंने पत्रकारों पर भी तोप दागी।
पवार साहब की शिकायत है कि पत्रकार विकास विरोधी हैं और उन्होंने गुजरात से सबक लेना चाहिए। गुजरात में नरेंद्र मोदी के राज में विपक्ष और पत्रकार दोनों ही विकास के लिए सरकार के फैसलों पर सरकार का साथ देते हैं। बिल्कुल सही बात की पवार साहब...विकास के कामों में पत्रकारों को और विपक्ष को अड़ंगा नहीं बनना चाहिए। वैसे तो महाराष्ट्र के विपक्ष को आप पहले ही 'तोड़पाणी' बाज कह चुके हो। लवासा प्रोजेक्ट आपके दिमाग की उपज है जब तक जमीन अधिग्रहण का मामला था तब तक आपका परिवार इस प्रोजेक्ट के बोर्ड में शामिल था। किसानों और आदिवासियों की जमीन औने-पौने दामों में हथियाने के मामले इतने छोटे हैं कि राष्ट्रहित में इनका त्याग करना ही ठीक होगा। परिवार के सदस्यों का प्रोजेक्ट में शामिल होना कोई गलत बात नहीं है। अब परिवार है, उनको भी विकास के इस गंगा में शामिल करना कोई गलत नहीं है। अब परिवार का विकास नहीं हुआ तो देश का कैसे होगा।
परिवार के विकास की बात अशोक चव्हाण ने भी की लेकिन बेचारे विकास विरोधी पत्रकारों के हमले में शरणागत हो गए। पवार साहब पुराने खिलाड़ी हैं। उन्होंने पत्रकारों पर ही उल्टा हमला करना शुरू किया। बात कुछ भी हो विकास के मुद्दे पर पत्रकारों की और पवार साहब आपके बीच ये टकराव होते ही रहेगा...गरीब, दबेकुचले वर्ग की जमीने लेकर, नियमों को तोड़कर आप जिस विकास की बात कर रहे हैं, उसमें कोई जनहित दिखाई नहीं देता। विकास के मुद्दे पर इसके पहले भी कई बार विवाद हो चुके हैं। नर्मदा से लेकर छोटे बांध, सड़क और बड़ी परियोजनाएं...विकास में विस्थापन तो होगा ही। मुद्दा ये है कि आखिर हम बार-बार किसका विस्थापन कर रहे हैं...कभी आपने सुना है कि किसी प्रोजेक्ट में मालाबार हिल पर रहने वाले किसी की इमारत या फ्लैट चला गया हो या फिर किसी बडे़ नेता की जमीन गई हो। बड़े नेताओं के जमीन के पास से नए प्रोजेक्टों को गुजरते हमने देखा है। विकास के इस कथित खेल में जिनका विस्थापन होना हैं उनको अपनी आवाज को उठाने का लोकतंत्र में पूरा हक है। इसे हम विकास विरोधी कैसे कह सकते हैं। जिसका घर टूटता है उसका दर्द उसी आदमी को पता चलता है। सरकार चलाने वालों को मानवीय और संवेदनशील होना ही पड़ेगा। आपकी विकास की परिभाषा कुछ और ही है जो हमें तो समझ में नहीं आती है।
देश के विकास में योगदान देने की तड़प उन्होंने अपने परममित्र अजित गुलाबचंद जो एचसीसी कंपनी के मालिक हैं उन्हें बताई। एक ऐसा शहर जहां पर सब कुछ होगा। घर होंगे, मॉल होंगे, ऑफिस होंगे, थिएटर होंगे...मतलब किसी भी काम के लिए आपको वहां से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। सारी सुख सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय दर्जे का एक शहर का नाम होगा लवासा।
सपना पवार साहब का हो और सच कैसे ना हो। लवासा के लिए जमीन का जुगाड़ शुरू हो गया। टूरिज्म, हिल स्टेशन और ऐसे कई कारणों के लिए किसान और आदिवासों की जमीन ली गई। बैकवॉटर वाली जमीन भी भतीजे अजित पवार ने अपने मंत्रिपद का इस्तेमाल कर लवासा को दे दी। इतना बडा़ काम है तो शिकायतें तो होंगी ही ना। अब किसान और आदिवासियों की जमीन होती ही है अधिग्रहण के लिए...। अब ये कैसे समझाया जाए विकास विरोधी पत्रकारों को। पत्रकारों ने लवासा के खिलाफ लिखना शुरू किया...लिखना शुरू किया तब विकास के विरोधी पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी आपत्ति उठाई। महाराष्ट्र सरकार में बैठे तत्कालीन राजस्व मंत्री नारायण राणे को भी पूरा मामला अटपटा लगा तो उन्होंने भी लवासा की इन्क्वायरी लगवा दी। लेकिन एक ही महीने के अंदर नारायण राणे को विकास की दृष्टि आ गई और उन्होंने लवासा की अनियमितताओं को मामूली हर्जाना वसूल कर नियमत करने का फैसला लिया। लेकिन ये विकास की दृष्टि पत्रकार और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के पास नहीं थी और इसी वजह से पवार साहब उखड़ गए। पहले तो उन्होंने खुलकर अपने सहयोगी मंत्री जयराम रमेश को ज्ञान सिखाने की कोशिश की। लवासा की वकालत की। अब बचे थे पत्रकार तो अपने होमग्राउंड यानी पुणे में उन्होंने पत्रकारों पर भी तोप दागी।
पवार साहब की शिकायत है कि पत्रकार विकास विरोधी हैं और उन्होंने गुजरात से सबक लेना चाहिए। गुजरात में नरेंद्र मोदी के राज में विपक्ष और पत्रकार दोनों ही विकास के लिए सरकार के फैसलों पर सरकार का साथ देते हैं। बिल्कुल सही बात की पवार साहब...विकास के कामों में पत्रकारों को और विपक्ष को अड़ंगा नहीं बनना चाहिए। वैसे तो महाराष्ट्र के विपक्ष को आप पहले ही 'तोड़पाणी' बाज कह चुके हो। लवासा प्रोजेक्ट आपके दिमाग की उपज है जब तक जमीन अधिग्रहण का मामला था तब तक आपका परिवार इस प्रोजेक्ट के बोर्ड में शामिल था। किसानों और आदिवासियों की जमीन औने-पौने दामों में हथियाने के मामले इतने छोटे हैं कि राष्ट्रहित में इनका त्याग करना ही ठीक होगा। परिवार के सदस्यों का प्रोजेक्ट में शामिल होना कोई गलत बात नहीं है। अब परिवार है, उनको भी विकास के इस गंगा में शामिल करना कोई गलत नहीं है। अब परिवार का विकास नहीं हुआ तो देश का कैसे होगा।
परिवार के विकास की बात अशोक चव्हाण ने भी की लेकिन बेचारे विकास विरोधी पत्रकारों के हमले में शरणागत हो गए। पवार साहब पुराने खिलाड़ी हैं। उन्होंने पत्रकारों पर ही उल्टा हमला करना शुरू किया। बात कुछ भी हो विकास के मुद्दे पर पत्रकारों की और पवार साहब आपके बीच ये टकराव होते ही रहेगा...गरीब, दबेकुचले वर्ग की जमीने लेकर, नियमों को तोड़कर आप जिस विकास की बात कर रहे हैं, उसमें कोई जनहित दिखाई नहीं देता। विकास के मुद्दे पर इसके पहले भी कई बार विवाद हो चुके हैं। नर्मदा से लेकर छोटे बांध, सड़क और बड़ी परियोजनाएं...विकास में विस्थापन तो होगा ही। मुद्दा ये है कि आखिर हम बार-बार किसका विस्थापन कर रहे हैं...कभी आपने सुना है कि किसी प्रोजेक्ट में मालाबार हिल पर रहने वाले किसी की इमारत या फ्लैट चला गया हो या फिर किसी बडे़ नेता की जमीन गई हो। बड़े नेताओं के जमीन के पास से नए प्रोजेक्टों को गुजरते हमने देखा है। विकास के इस कथित खेल में जिनका विस्थापन होना हैं उनको अपनी आवाज को उठाने का लोकतंत्र में पूरा हक है। इसे हम विकास विरोधी कैसे कह सकते हैं। जिसका घर टूटता है उसका दर्द उसी आदमी को पता चलता है। सरकार चलाने वालों को मानवीय और संवेदनशील होना ही पड़ेगा। आपकी विकास की परिभाषा कुछ और ही है जो हमें तो समझ में नहीं आती है।
Comments
lawasa ke bad ab bari hai raigad ke cotal area ki... jis par ab pawar sahab ki najar padi hai. diveagar ke najdik bharadkkhol me samandar kinare pe ek pahadi ke upar pawar sahab apna naya lawasa bana rahe hai....jis ka kaam shuru ho chuka hai...
harshad kashalkar
lawasa ke bad ab bari hai raigad ke cotal area ki... jis par ab pawar sahab ki najar padi hai. diveagar ke najdik bharadkkhol me samandar kinare pe ek pahadi ke upar pawar sahab apna naya lawasa bana rahe hai....jis ka kaam shuru ho chuka hai...
harshad kashalkar