देश के लिए....!
वर्धा के पुलगाव स्थित सेनादल के डिपो में रात को भीषण आग लगी। वैसे मैं अभी किसी मीडिया के लिए काम नहीं कर रहा, मैं वर्धा कें सेवाग्राम में बापू के विचारो की ताकत को महसूस कर रहा था।लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन बेचैन सा था। वर्धा से आनंदवन की तरफ़ निकलना था, लेकिन फिर निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव किया, शायद मेरे अंदर का रिपोर्टर मुझे आनंदवन की तरफ़ बढनेकी इजाज़त नहीं दे रहा था।
मेरी टीम से साथ हम पुलगांव पहुँचे, वहाँ सेना के अॅम्युनेशन भांडार डिपो को रात को आग लगी थी! १७ के क़रीब जवान इस आग में झुलस कर मर गए, आग लगने के बाद जो धमाके हुए थे उससे अग़ल बग़ल के गाँव दहल उठे थे। लोग घबरा कर अपने गाँव छोड़कर भाग खड़े हुए। कुछ के मकानों को क्षति पहुँची थी। रास्ते में पुलिस वाले जगह जगह चौपाल लगाए बैठे थे।
माहौल में कुछ तनाव महसूस हो रहा था, डिपो के पीछे कुछ गाँव थे,उसमें से एक गाँव में हम पहुँचे तो पुरा गाँव पंचायत की दफ़्तर में बैठा हुआ नज़र आया। बातचीत शुरू की तो पता चला की पुलिसवालों ने गाँव ख़ाली कराने का जो दावा किया था उसपर वो नाराज़ है। गाँववालों ने ख़ुद अपने घर छोड़े और परिवार को सुरक्षित जगहों पर भेजा।
आग भड़क रही थी तब कुछ युवाओं ने आग बुझाने के लिये खेतों की तरफ़ दौड़ लगाई। लेकिन नसीब छोड़िये बिजली विंभाग ने साथ नहीं दिया। बिजली ना होने के कारण पंप नहीं चल पाए और युवाओं को निराश लौटना पड़ा। कम से कम जहाँ पर आग लगने की संभावना है ऐसी जगहों पर पानी के पंप चलाने के लिए २४ घंटे बिजली मुहैय्या कराई जाए ऐसी माँग गाँववाले सेना के अधिकारियों से कर कर के थक गए थे।
इतने में गाँव के सरपंच ने जो बताया वो सुनकर दिमाग़ सन्न रह गया। इस आग ने जिन जवानों को छीना उनमें एक नाम था मनोज कुमार का। मनोज कुमार सेना का युवा अधिकारी, जो किसानों के दुखदर्द को जानता था, और उसे अपना दुख समझता था। पुलगांव डिपो के अगलबगल के गाँवों के लिए सेना के कड़े नियम थे।खेतों में आग लगाने पर पाबंदी से लेकर कुओं की खुदाई तक। सेना के इन नियमों की वजह से गाँववाले परेशान थे। साथही सूखे की स्थिति से परेशान गाँववालों के लिए मनोज कुमार एक मसीहा ही था। मनोज कुमार और उनके साथियों ने गाँववालों से बातचीत कर उन्हें पुरा सहयोग दिया था। सुखों से परेशान किसानों को खेती के लिए मदद करने के लिए भी मनोज कुमार आगे आए। कई किसानो को उन्होंने बुआई के लिए मदद मुहैय्या कराई थी। मनोज कुमार के ना होने की ख़बर को गाँववाले पचा नहीं पा रहे है।
सेना के इस अधिकारी की मौत की ख़बर से गाँव सन्न हुआ है। धमाकों की आवाज़ की वजह से गाँव के कई घरों में दरारे आई है, वो दरारें कल भरी भी जाएँगी ,दुरूस्त की जा सकती है लेकिन मनोज कुमार वापस नहीं आ सकते, उनके साथी वापस नहीं आ सकते।
डिपो के पास होने से गाँववालों को हमेशा ख़तरा रहता है। इसके पहले भी यहाँ आग लग चुकी है। गाँव के सरपंच से पुछा की जब इतना ख़तरा है तो फिर आप लोग कैसे यहाँ रहते है, सरपंच ने एक मिनट का भी वक़्त नहीं लिया और बताया की साहब, ये जवान यहाँ रहते है, देश के ख़ातिर। उनको भी मौत का ख़तरा होता है, हम क्या इतना ख़तरा नहीं मोल सकते... देश के खातिर।।।
मेरे नज़रों के सामने से सारी टीवी डिबेट सर्र से सरक गई.... मैं टीव्ही तो नहीं देख पा रहा हूँ इस वक़्त..( लेकिन शायद इस वक्त चैनलों पर आग के लिए जिम्मैदार कौन है और डिफ़ेन्स इन्स्टॉलेशन्स के आसपास बस्तियों के होने ना होने पर डिबेट चल रही होगी। ये सरपंच उन किसी डिबेट में शामिल नहीं हो सकता... ना ही वहाँ तक पहुँच सकता है... वो दूर है कोलाहल से कोसो दूर... कुछ सोच रहा है देश के लिए।
रवींद्र आंबेकर
@ravindraAmbekar
Raviamb@gmail.com
वर्धा के पुलगाव स्थित सेनादल के डिपो में रात को भीषण आग लगी। वैसे मैं अभी किसी मीडिया के लिए काम नहीं कर रहा, मैं वर्धा कें सेवाग्राम में बापू के विचारो की ताकत को महसूस कर रहा था।लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन बेचैन सा था। वर्धा से आनंदवन की तरफ़ निकलना था, लेकिन फिर निर्धारित कार्यक्रम में बदलाव किया, शायद मेरे अंदर का रिपोर्टर मुझे आनंदवन की तरफ़ बढनेकी इजाज़त नहीं दे रहा था।
मेरी टीम से साथ हम पुलगांव पहुँचे, वहाँ सेना के अॅम्युनेशन भांडार डिपो को रात को आग लगी थी! १७ के क़रीब जवान इस आग में झुलस कर मर गए, आग लगने के बाद जो धमाके हुए थे उससे अग़ल बग़ल के गाँव दहल उठे थे। लोग घबरा कर अपने गाँव छोड़कर भाग खड़े हुए। कुछ के मकानों को क्षति पहुँची थी। रास्ते में पुलिस वाले जगह जगह चौपाल लगाए बैठे थे।
माहौल में कुछ तनाव महसूस हो रहा था, डिपो के पीछे कुछ गाँव थे,उसमें से एक गाँव में हम पहुँचे तो पुरा गाँव पंचायत की दफ़्तर में बैठा हुआ नज़र आया। बातचीत शुरू की तो पता चला की पुलिसवालों ने गाँव ख़ाली कराने का जो दावा किया था उसपर वो नाराज़ है। गाँववालों ने ख़ुद अपने घर छोड़े और परिवार को सुरक्षित जगहों पर भेजा।
आग भड़क रही थी तब कुछ युवाओं ने आग बुझाने के लिये खेतों की तरफ़ दौड़ लगाई। लेकिन नसीब छोड़िये बिजली विंभाग ने साथ नहीं दिया। बिजली ना होने के कारण पंप नहीं चल पाए और युवाओं को निराश लौटना पड़ा। कम से कम जहाँ पर आग लगने की संभावना है ऐसी जगहों पर पानी के पंप चलाने के लिए २४ घंटे बिजली मुहैय्या कराई जाए ऐसी माँग गाँववाले सेना के अधिकारियों से कर कर के थक गए थे।
इतने में गाँव के सरपंच ने जो बताया वो सुनकर दिमाग़ सन्न रह गया। इस आग ने जिन जवानों को छीना उनमें एक नाम था मनोज कुमार का। मनोज कुमार सेना का युवा अधिकारी, जो किसानों के दुखदर्द को जानता था, और उसे अपना दुख समझता था। पुलगांव डिपो के अगलबगल के गाँवों के लिए सेना के कड़े नियम थे।खेतों में आग लगाने पर पाबंदी से लेकर कुओं की खुदाई तक। सेना के इन नियमों की वजह से गाँववाले परेशान थे। साथही सूखे की स्थिति से परेशान गाँववालों के लिए मनोज कुमार एक मसीहा ही था। मनोज कुमार और उनके साथियों ने गाँववालों से बातचीत कर उन्हें पुरा सहयोग दिया था। सुखों से परेशान किसानों को खेती के लिए मदद करने के लिए भी मनोज कुमार आगे आए। कई किसानो को उन्होंने बुआई के लिए मदद मुहैय्या कराई थी। मनोज कुमार के ना होने की ख़बर को गाँववाले पचा नहीं पा रहे है।
सेना के इस अधिकारी की मौत की ख़बर से गाँव सन्न हुआ है। धमाकों की आवाज़ की वजह से गाँव के कई घरों में दरारे आई है, वो दरारें कल भरी भी जाएँगी ,दुरूस्त की जा सकती है लेकिन मनोज कुमार वापस नहीं आ सकते, उनके साथी वापस नहीं आ सकते।
डिपो के पास होने से गाँववालों को हमेशा ख़तरा रहता है। इसके पहले भी यहाँ आग लग चुकी है। गाँव के सरपंच से पुछा की जब इतना ख़तरा है तो फिर आप लोग कैसे यहाँ रहते है, सरपंच ने एक मिनट का भी वक़्त नहीं लिया और बताया की साहब, ये जवान यहाँ रहते है, देश के ख़ातिर। उनको भी मौत का ख़तरा होता है, हम क्या इतना ख़तरा नहीं मोल सकते... देश के खातिर।।।
मेरे नज़रों के सामने से सारी टीवी डिबेट सर्र से सरक गई.... मैं टीव्ही तो नहीं देख पा रहा हूँ इस वक़्त..( लेकिन शायद इस वक्त चैनलों पर आग के लिए जिम्मैदार कौन है और डिफ़ेन्स इन्स्टॉलेशन्स के आसपास बस्तियों के होने ना होने पर डिबेट चल रही होगी। ये सरपंच उन किसी डिबेट में शामिल नहीं हो सकता... ना ही वहाँ तक पहुँच सकता है... वो दूर है कोलाहल से कोसो दूर... कुछ सोच रहा है देश के लिए।
रवींद्र आंबेकर
@ravindraAmbekar
Raviamb@gmail.com
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